छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए एक लाख का बॉन्ड देने का डीयू प्रशासन का आदेश तुगलकी: कुलदीप बिधुड़ी

छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए एक लाख का बॉन्ड देने का डीयू प्रशासन का आदेश तुगलकी: कुलदीप बिधुड़ी

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नई दिल्ली, 13 अगस्त (हि.ला.)। आम आदमी पार्टी के छात्र विंग एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स फॉर अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स (एसैप) ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए एक लाख रुपए का बॉन्ड भरने के आदेश का विरोध किया है। एसैप का कहना है कि डीयू प्रशासन का यह आदेश तुगलकी है। डीयू प्रशासन इस तुगलकी फरमान के जरिए मिडिल क्लास के छात्रों को छात्र संघ चुनाव से दूर रखने की साजिश रच रहा है। एसैप ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन और वाइस चांसलर से इस आदेश पर विचार करने की मांग की। साथ ही कहा है कि अगर यह आदेश वापस नहीं लिया जाता है तो एसैप छात्रों के साथ इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेगा।

एसैप के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप बिधुड़ी ने पार्टी मुख्यालय पर प्रेसवार्ता कर कहा कि अगले महीने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव के संबंध में 8 अगस्त को डीयू प्रशासन ने एक तुगलकी फरमान जारी किया है। इसके तहत छात्र संघ चुनाव लड़ने वाले छात्र को एक लाख रुपए का बॉन्ड भरना पड़ेगा। इस बॉन्ड की शर्त लगाने से डीयू प्रशासन की सोच पर सवाल उठ रहा है। यह फरमान सीधे तौर पर मध्यम वर्ग के छात्रों को चुनाव लड़ने से रोकने की एक साजिश है।

बिधुड़ी ने कहा कि जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी, तब भाजपा एलजी के जरिए दिल्ली के काम रुकवाती थी और अरविंद केजरीवाल का विरोध करती थी। अब उसी तरह से एबीवीपी डीयू के वीसी से यह फरमान जारी करवाती है और फिर फरमान का विरोध भी करती है। ये लोग सिर्फ मध्यम वर्ग के छात्रों को छात्र संघ चुनाव लड़ने से रोकना चाहते हैं। यही ये लोग पिछले 20 साल से करते आ रहे हैं। जिन छात्रों के पास पैसा होगा, वही छात्र संघ का चुनाव लड़ पाएगा। अब अगर छात्र संघ के चारों पदों पर कोई छात्र अपना नामांकन दाखिल करता है तो इसके लिए वह चार लाख रुपए बॉन्ड के कहां से लाएगा।

जाकिर हुसैन कॉलेज के यूनिट प्रेसिडेंट शैलेश यादव कहा कि जिस तरह दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी तानाशाही लगातार छात्रों पर थोप रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। इससे पहले अंडरग्रेजुएट कोर्स और अन्य कोर्स की फीस बढ़ाई गई। सेंट्रल लाइब्रेरी में शुल्क बढ़ाए गए। अब यह फरमान जारी करके मध्यम वर्ग के छात्रों के पैरों में जंजीर डालने का काम किया जा रहा है। जिन देशों के नेता, प्रोफेसर, छात्र और किसान गरीबों के हित की बात करते हैं, डीयू प्रशासन उन्हीं गरीब छात्रों का विश्वविद्यालय में प्रतिनिधित्व रोकना चाहता है?

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