- डॉ. सिंघवी बोले- चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का बार-बार विरोध किया और उन्हें लागू करने में विलंब किया
- पवन खेड़ा को कारण बताओ नोटिस प्रतिशोध की भावना से प्रेरित: सिंघवी
नई दिल्ली, 10 सितंबर (हि.ला.)। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने एसआईआर प्रक्रिया में आधार कार्ड को शामिल करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने में देरी करने और कांग्रेस नेता पवन खेड़ा को बिना जांच किए कारण बताओ नोटिस जारी करने पर चुनाव आयोग को घेरा है।
इंदिरा भवन स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने याद दिलाया कि चुनाव आयोग ने बिना किसी पूर्व सूचना या परामर्श के अचानक जून के अंत में बिहार में चुनाव से चार महीने पहले एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि 2003 में महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में इसी तरह की प्रक्रिया को चुनावों की निकटता के कारण स्थगित किया गया था और पूछा कि बिहार में ऐसा क्यों नहीं हुआ। उन्होंने एसआईआर प्रक्रिया में वैध दस्तावेजों की सूची से आधार कार्ड को हटाने के निर्णय को रहस्यमयी बताते हुए कहा कि बिहार की मतदाता सूची से जब 65 लाख मतदाता हटाए गए, तब चुनाव आयोग ने इसका कोई कारण नहीं बताया।
डॉ. सिंघवी ने आधार कार्ड को 12वें वैध पहचान दस्तावेज के रूप में शामिल करने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला देते हुए चुनाव आयोग के रवैये की आलोचना की। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राशन, पेंशन और टैक्स जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए आधार कार्ड स्वीकार्य है, तो उसे मतदाता सूची में शामिल करने से इंकार क्यों किया जा रहा था? उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आठ सितंबर के आदेश से पहले भी तीन बार चुनाव आयोग को आधार कार्ड को एसआईआर प्रक्रिया में शामिल करने के आदेश दिए थे, लेकिन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का बार-बार विरोध किया और उन्हें लागू करने में विलंब किया। अंततः आठ सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को बाध्य होकर इस बारे में आदेश देना पड़ा।
डॉ. सिंघवी ने पार्टी के मीडिया एवं प्रचार विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा और उनकी पत्नी नीलिमा कोटा को नई दिल्ली के निर्वाचन कार्यालय द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस को प्रतिशोध से प्रेरित करार दिया। उन्होंने बताया कि दो सितंबर को खेड़ा को नोटिस जारी किया गया और उनके निजी विवरण सार्वजनिक किए गए। उन्हें अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना तथा कोई जांच किए बिना दोषी ठहराने वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया।
सिंघवी ने तथ्यों का हवाला देते हुए बताया कि 2017 में पवन खेड़ा जब जंगपुरा शिफ्ट हुए तो उन्होंने नए पते पर नाम ट्रांसफर करने के लिए निर्धारित फॉर्म भरा था, जिसके बाद चुनाव आयोग ने उनका नाम नए पते के अनुसार संबंधित विधानसभा क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया। खेड़ा के पास इस प्रकिया की रसीद भी है। सिंघवी ने कहा कि यदि आठ साल पहले आवेदन करने पर भी रिकॉर्ड में बदलाव नहीं हुआ, तो यह चुनाव आयोग की गलती है।
सिंघवी ने सवाल उठाया कि आठ साल पुराने मामले को अब क्यों उठाया गया, जब खेड़ा बिहार में एसआईआर और अन्य मुद्दों पर चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं।