उत्तराखण्ड में जल संरक्षण की ऐतिहासिक पहल, गैरसैंण से शुरू हुआ भूजल पुनर्भरण का नया अध्याय

उत्तराखण्ड में जल संरक्षण की ऐतिहासिक पहल, गैरसैंण से शुरू हुआ भूजल पुनर्भरण का नया अध्याय

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भराड़ीसैंण, 19 अगस्त (हि.ला.)। उत्तराखण्ड में जल संकट की चुनौती से निपटने के लिए आज एक ऐतिहासिक पहल का आगाज हुआ। विधानसभा भवन, भराड़ीसैंण में आयोजित भव्य कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूडी भूषण ने स्वामी राम विश्वविद्यालय जौलीग्रांट के सहयोग से “डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना” का शुभारंभ किया।

इस अवसर पर राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री गणेश जोशी, कई विधायकगण, विभिन्न विभागों के सचिव एवं विधानसभा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी सहित स्वामी राम विश्वविद्यालय के अधिकारी उपस्थित रहे।

उत्तराखण्ड—हिमाच्छादित पर्वतों और अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध प्रदेश, जहां लगभग 80% पेयजल स्रोत पारंपरिक झरनों और धाराओं पर आधारित हैं। किंतु पिछले दो दशकों में भूजल स्तर में लगभग 40% की गिरावट ने जल संकट को गहरा कर दिया है। पारंपरिक जल स्रोत और हैंडपंप सूखने लगे हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती बन गया है।

गौरतलब है कि यह परियोजना विधानसभा अध्यक्ष के मार्गदर्शन और संकल्प का परिणाम है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए 8 जुलाई 2025 को अंतरराष्ट्रीय संसदीय अध्ययन, शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान , भराड़ीसैंण और स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के बीच एक mou हुआ था।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संबोधन में कहा, "पेयजल की उपलब्धता हर नागरिक का अधिकार है। हमारी सरकार तकनीकी नवाचारों को अपनाकर राज्य के जल संकट को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह योजना केवल एक परियोजना नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड को जल संरक्षण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।"

कार्यक्रम की शुरुआत में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूडी भूषण ने कहा कि जल संरक्षण केवल पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड की भविष्य की जीवनरेखा है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूडी भूषण ने इसे समय की आवश्यकता बताते हुए कहा कि “भूजल पुनर्भरण भविष्य की जल सुरक्षा का आधार बनेगा। यह योजना उत्तराखण्ड में सतत जल प्रबंधन और जल संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।

डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना के अंतर्गत उपचारित वर्षा जल को निष्क्रिय हैंडपंपों में इंजेक्ट कर भूजल स्तर को बढ़ाया जाएगा। इस तकनीक को स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय , जौलीग्रांट के विशेषज्ञों द्वारा विकसित किया गया है। योजना के पहले चरण में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण और चौखुटिया विकासखंडों के 20 चयनित हैंडपंपों को पुनर्भरण कर पुनः क्रियाशील बनाया जाएगा। यह प्रयास उत्तराखण्ड में जल प्रबंधन के लिए एक स्थायी समाधान की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है।

इस अवसर पर विश्विद्यालय की तकनीकी टीम—प्रोफेसर एच.पी. उनियाल,नितेश कौशिक,सुजीत थपलियाल राजकुमार वर्मा, अतुल उनियाल, अभिषेक उनियाल और शक्ति भट्ट ने योजना की तकनीकी प्रक्रिया पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि किस प्रकार यह तकनीक वर्षा जल को फिल्टर और ट्रीट कर सीधे भूजल भंडार तक पहुंचाती है, जिससे सूखे हैंडपंप फिर से जीवंत हो जाते हैं।

विशेष पहल के तहत उन गांवों के ग्रामीण भी ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम से जुड़े, जिनके गांवों में हैंडपंपों को डायरेक्ट इंजेक्शन तकनीक द्वारा पुनर्भरण कर पुनः चालू किया गया है। ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और विश्वविद्यालय को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह योजना उनके लिए जीवनदायिनी साबित हुई है। उन्होंने साझा किया कि ग्रीष्मकाल में जब पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी, अब घर के पास पुनर्जीवित हैंडपंप से पानी उपलब्ध है।

कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई एक डॉक्यूमेंट्री भी प्रदर्शित की गई, जिसमें गैरसैंण क्षेत्र के गांव में लागू की गई तकनीक और उसके परिणामों को दिखाया गया। फिल्म में ग्रामीणों की प्रतिक्रियाएं, तकनीकी प्रक्रिया और पुनर्जीवित हैंडपंपों के दृश्य शामिल थे। इसे देखकर उपस्थित जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने विश्वविद्यालय के प्रयासों की सराहना की।

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